kanchan singla

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कलम, कागज़ और मैं...!!

कलम, कागज़ और मैं

कलम का कागज से एक गहरा सा रिश्ता है
जो कलम उठती लिखने को कागज को ढूंढा करती है
बिना कागज के कलम का जीवन अधूरा है
बिना कलम के कागज का जीवन सूना सूना है
टेढ़े टेढ़े अक्षर स्याही में पिरोकर कलम चलाती कागज पर
कागज उनको खुद पर सजा कर बन जाता एक पूरी किताब है
कागज और कलम मिलकर सिर्फ किताब ही नहीं बनाते हैं
सुंदर सुंदर आकृतियां कलम कागज़ पर उतारती है
बिन रंगो के भी उन्हें आकार में उतारती है
कलम और कागज साथ साथ चलते हैं
एक दूसरे के पूरक कहलाते हैं
एक तरफ कलम कैनवस पर चित्र उभारती है
दूजी तरफ शब्दों की माला पिरोकर कहीं कोई कविता संजोती है
या फिर कोई कहानी लिख डालती है
ज्ञानी से ज्ञानी भी कलम, कागज़ के बिना अधूरा है
कल्पनाओं का सवेरा है कलम ने कागज पर उकेरा है।।

कुछ ऐसा ही रिश्ता है इन दोनों से मेरा
मैं जो लिखने बैठूं कोई कविता नयी
याद सताए मुझको कलम कागज़ की जोड़ी की
हो किस्सा या कोई कहानी 
बिना कलम कागज़ के हो ना पाए पूरी
जब जब पकडूं मैं कलम को
कागज साथ हो मेरे
सरपट दौड़ें हाथ वो मेरे
लिखने को कोई कविता या कहानी
कभी कलम थक कर रुक जाती है
कभी कागज भर जाता है
कभी मेरी उंगलियां लिखते लिखते दुख जाती हैं
कलम कागज़ और मैं
तीनों की अपनी मुश्किलें हैं
तीनों की अपनी दास्तां 
तीनों भिन होकर भी एक हैं
तीनों का जीवन एक दूजे बिन अधूरा है 
कलम से कागज है, कागज से कलम 
और इन दोनों से ही पूरक मैं हूं।।


लेखनी प्रतियोगिता -18-Jul-२०२२
# कॉपीराइट_लेखिका - कंचन सिंगला©®

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9 Comments

Seema Priyadarshini sahay

19-Jul-2022 06:21 PM

बेहतरीन रचना

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Punam verma

19-Jul-2022 08:41 AM

Very nice

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Abhinav ji

19-Jul-2022 07:44 AM

Very nice

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